महाभारत ज्ञान की बातें I Mahabharat Gyan Ki Baten महाभारत को पाँचवाँ वेद कहा गया है I ऐसा माना जाता है कि जो ज्ञान महाभारत में नहीं है वो ज्ञान संसार में कहीं भी नहीं है I महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत काल में लोगों को जीवन, धर्म, राजनीति, देश, समाज, ज्ञान और विज्ञान के बारे में परिचय कराया है I महाभारत में घटी घटनाओं में से हमे बहुत सी प्रेरणा मिलती है, आइये जानते हैं –
महाभारत ज्ञान की बातें I Mahabharat Gyan Ki Baten यदि मनुष्य अपने जीवन में सफलता और वास्तविक खुशी चाहता है तो उसे महाभारत से सीख लेनी चाहिये, महाभारत में ऐसी बहुत सी बातें है जिनको यदि अपने जीवन में प्रयोग किया जाये तो जीवन में आनन्द ही आनन्द हो जायेगा I मनुष्य अपने कार्यों के प्रति शंका का भाव बनाये रखता है जिसकी वजह से उसे सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है, शंका के विषय में महाभारत में भगवान्आ श्री कृष्ण ने क्या बातें समझाई हैं आइये समझते हैं –
भगवान श्री कृष्ण से महाभारत में अर्जुन ने पृश्न पूँछा कि –
अर्जुन के उपरोक्त समस्त प्रश्नों का जबाब भगवान श्री कृष्ण ने एक ही लाइन में दिया कि “संश्यातमा विनश्यति”।
मतलब है कि जो मनुष्य शंका से घिरा रहता है वह अपना नाश कर लेता है, वह जीवन में हार जाता है, उसे सिद्धियाँ नहीं मिलती, उसके पास उन्नति, तरक्की और सफलता कभी नहीं आती, वह जीवन में सफलता से कोसों दूर रहता, उसे सब कुछ मिल तो सकता है किन्तु मिलता नहीं।
जो व्यक्ति अपने कार्यो के प्रति संशय में रहता है वह जीवन में कुछ भी नहीं प्राप्त कर पाता क्योंकि वह संशय के कारण अपने कार्यो को बदलता ही रहता है और अंत में प्राप्त कुछ भी नहीं होता।
अतः आप जो भी करो उसमें संशय मत करो यदि आपको एक प्रतिशत भी संशय है तो सफलता प्राप्त नही होगी।
तब अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न पूँछा कि “शंका दूर कैसे होगी ?
भगवान श्री कृष्ण ने इस प्रश्न का जबाब दिया कि “श्रद्धावान लभते ज्ञानम्”।
अर्थात श्रद्धावान का मतलब जो व्यक्ति अपने गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है, अपने गुरु से सलाह माँगता है, अपने ज्ञान में हमेशा वृद्धि करता है, गुरु के न होने की दशा में पुस्तकों के प्रति श्रद्धावान होता है।
व्यक्ति के मन में शंका का भाव आयेगा, मन में शंका का जन्म लेना हानिकारक नहीं होता है, परंतु उस शंका को व्यक्ति जब बनाये रखता है और उसे दूर करने की चेस्टा तक नहीं करता तो हानिकारक सिद्ध हो जाता है।
शंका करने से शंका बढ़ती है और विश्वास करने से विश्वास बढ़ता है। यह आपकी इच्छा है कि आप किसके साथ रहना पसन्द करते हैं।
महाभारत से हमें सीख मिलती है कि हम जो कुछ भी करते हैं, हमें हमेशा भगवान् की सहायता और मार्गदर्शन लेना चाहिए और हमारे सभी प्रयासों में भागीदार बनाना चाहिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अमीर हैं या गरीब, हम कमजोर है या शक्तिशाली, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि हमारे पास ईश्वर है या नहीं I संसार में सभी शक्ति और धन क्या है अगर भगवान् हमारे साथ नहीं है और भगवान् हमरे प्रयास का हिस्सा नहीं है I
दुर्योधन के साथ वह सब कुछ था जो वह चाहता था, लेकिन उसमे विश्वाश की कमी थी, उसने भगवान् के समर्थन को नजरंदाज कर दिया, उसने सोचा कि उसके पास दुश्मनों से निपटनें के लिए आवश्यक शक्ति और संसाधन हैं, उसने बेवजह सोचा कि वह सब कुछ खुद से कर सकता है, उसने युद्ध के मैदान में भगवान् के खिलाफ खड़े होने और उनके साथ लड़ने की परवाह नहीं की I
इस सब में एक महत्वपूर्ण सीख है जो आज बहुत प्रासंगिक है और जिसे हम स्वार्थी कार्यों के परिणामों से खुद को बचाने के लिए सीख सकते हैं I यदि आप ध्यान से देखेंगें तो पायेंगे कि वर्तमान समय में धर्मराज की तुलना में हमारे बीच दुर्योधन अधिक हैं I
हमरे बीच ऐसे लोग हैं जो अपने जीवन में सफलता और लोकप्रियता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं और किसी भी साधन का सहारा ले लेते हैं, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि ईश्वर उनके साथ है या उनके खिलाफ, उन्हें परवाह नहीं कि धर्म है या अधर्म I उनमें रिश्तों, परिवार, परंपरा और नैतिक मूल्यों के लिए कोई सम्मान नहीं होता है I
उनके लिए क्या मायने रखता है धन, शक्ति और धन के रूप में भौतिक सफलता, वे अपने स्वयं के अभिमान को खिलते हैं हुए अपने स्वयं के गौरव को प्रकट करते हैं, वे भगवान् के नाम और शक्ति का उपयोग कर सकते हैं लेकिन केवल एक स्वार्थी इरादे के साथ और एक स्वार्थी उद्देश्य के लिए, कभी इसे स्वीकार किये बिना, यदि आवश्यक हो तो वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उसे या उसके कानून को धता बताने से गुरेज नहीं करते I अपने आपको देखकर और अपने लिए जीने और अभिमान करने के लिए वे इस भ्रम में रहते हैं कि उनकी व्यक्तिगत कोशिशें उनकी उपलब्धियों के लिए जिम्मेदार हैं और वे अपने आप के स्वामी हैं I
शक्ति, नाम और प्रसिद्धि के साथ वे इतने आसक्त होते हैं कि वे दूसरों द्वारा किये गए कार्य का श्रेय ले सकते हैं, लेकिन दूसरों की सराहना करने के लिए शायद ही कभी आगे आते हैं I इसी तरह वे भगवान् द्वारा प्रदान किये गए मूक समर्थन के लिए कोई आभार नहीं दिखाते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि ऐसा करने में के अपने कार्यों के परिणामों के लिए खुद को उजागर कर रहें हैं हुए खुद को अपने भीतर की दिव्यता से दूर कर रहे हैं I
अगर हम अपनी खुद की सफलताओं – असफलताओं की आसक्ति से मुक्त होना चाहते हैं तो हमें ईश्वर को अपना मार्गदर्शक और गुरु बनाना होगा I सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उसे अपने जीवन में पूरे दिल से उतारना होगा और उन्हें अपने जीवन का सारथी बनाकर उन्हें उचित स्थान देना होगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे पास भौतिक सुख सुविधायें हैं या नहीं I
क्या मायने रखता है कि हम धर्म का पालन करने की अपनी प्रतिबद्धता में भगवान् के साथ हैं, हमें उस पर विश्वास करना होगा और हमारे सभी कार्यों में उनका आशीर्वाद प्राप्त करना होगा I हम जो करते हैं या जो हमने पूरा किया है उस पर गर्व करने के वजाय हमें अपने जीवन और हमारी सभी सफलताओं – असफलताओं में उनकी भूमिका को स्वीकार करके उनका अहसानमंद रहना होगा I
यह समपर्ण और भक्ति का कार्य है जिसमे कोई विफलता नहीं है, कोई निराशा नहीं है, कोई भय नहीं है और कोई अज्ञानता नहीं है, केवल सफलता, ख़ुशी और हमारे अपने अन्दर बैठे राक्षसों के खिलाफ अंतिम जीत है I यह निश्चित रूप से श्रेष्ठ ज्ञान और शाश्वत स्वतंत्रता का मार्ग है, यह एक ऐसा मार्ग है जिसपर हम कभी अकेले नहीं होते हैं I
सहृदय धन्यबाद।
और पढ़ें –
Parmatma Ki Prapti Ka Upay: परमात्मा की प्राप्ति का उपाय बहुत ही सरल है। संसार…
How To Read Others : दूसरों को कैसे पढ़ें - हर कोई चाहता है कि…
Free Silai Mashine Yojana 2022 Online Apply, फ्री सिलाई मशीन योजना रजिस्ट्रेशन, फ्री सिलाई मशीन…
दिव्यांगजन शादी विवाह प्रोत्साहन योजना 2022, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, ऑनलाइन आवेदन, पात्रता, लाभ, ऑनलाइन आवेदन स्थिति…
उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना 2022 ऑनलाईन आवेदन I यूपी बाल सेवा योजना पात्रता,…
Solar Rooftop Yojana 2022: फ्री सोलर पैनल ऑनलाईन आवेदन प्रक्रिया, लाभ, आवश्यक दस्तावेज, Solar Rooftop…
This website uses cookies.
View Comments