अध्यात्म

Geeta Updesh in Hindi : गीता के अनमोल उपदेश

Geeta Updesh in Hindi : गीता के अनमोल उपदेश, पालन करें और अपने जीवन को सार्थक, सफल बनायें I

श्रीमदभगवत गीता में कुल अठारह अध्याय दिए गए हैं, इस पुराण में महाभारत काल के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गये धर्म व कर्म के ज्ञान का सम्पूर्ण संकलन है I ( श्री कृष्ण के उपदेश ) विद्वानों के अनुसार गीता में दिए गए उपदेश मनुष्यों को अपने जीवन में आ रही दुविधाओं से पार पाने का तरीका बताया गया है I

कहा जाता है कि गीता के उपदेशों का (भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान) पालन करने से मनुष्यों को जीवन में कभी भी निराशा का सामना नहीं करना पड़ेगा I आज हम इस लेख के माध्यम से आपको गीता के कुछ ऐसे ही उपदेशों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जिनका पालन कर आप हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं I

गीता के उपदेश मानव जाति के लिए सूर्य के समान हैं, जो अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाते हैं, मानव जाति के लिए गीता के उपदेशों की उपयोगिता सदा बानी रहेगी I

यदि आप दुःख, क्लेश से मुक्त होकर सफल, सुखद जीवन चाहते हैं तो आपको इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि इस लेख – Geeta Updesh in Hindi : गीता के अनमोल उपदेश I में बताये गए गीता के अनमोल उपदेश का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक और सफल बना सकें I

Geeta Updesh in Hindi : गीता के अनमोल उपदेश

Geeta Updesh : गीता के अनमोल उपदेश

ये गीता उपदेश वो परम सत्य है, जिसे अपनाकर हर व्यक्ति दुःख – क्लेश मुक्त होकर सफल – सुखद जीवन जी सकता है I इस लेख में गीता की कुछ ऐसी बातें बतायीं गयीं हैं, जिसके ज्ञान की हर व्यक्ति को जरुरत पड़ती है, मनुष्य का संघर्ष जितना बाहरी होता है, उतना ही आतंरिक भी चलता है I सोच और कर्म का संतुलन ही सफल जीवन का मन्त्र है I सही – गलत और उचित निर्णय की दुविधा में फंसे व्यक्ति को गीता के इन उपदेश से मानसिक संबल और धैर्य मिलता है I

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क्रोध पर काबू रखें

गीता में दिए गए उपदेश के अनुसार जो व्यक्ति अपने क्रोध पर काबू नहीं रख सकता है वह कभी सफल नहीं हो पाता, ऐसे व्यक्ति क्रोध में आकर अपना सब कुछ खो बैठते हैं और गलत कार्य कर देते हैं क्योंकि क्रोध में व्यक्ति सही – गलत की समझ भूल जाता है, या फिर अपनी ही मानसिक शांति को भंग करके खुद को कष्ट देता है, इसलिए कभी भी क्रोध को खुद पर हावी न होने दें I

सकारात्मक सोच है जरुरी

गीता के अनुसार मनुष्य को हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए क्योंकि सकारात्मक सोच होने पर आप कभी निराश नहीं होंगे और परेशानी के समय शांत मतिष्क से उसका हल निकल सकेंगें I

मन पर रखें नियंत्रण

मन का स्वभाव है कि ये आसानी से भटक जाता है, यदि जीवन को सफलता की दिशा में ले जाना है तो मन को काबू करना अति आवश्यक है I भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि बार – बार प्रयास करने से धीरे – धीरे चंचल मन को वश में किया जा सकता है, मन को वश में करने से मस्तिष्क की शक्ति केंद्रित होती है जिससे कार्यों में सफलता मिलने लगती है I अगर मन को वश में नहीं करोगे तो ये आपका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है I

आत्म मंथन करें

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को आत्म मंथन अवश्य करना चाहिए, ताकि वह सही – गलत की पहचान कर सके और सही रस्ते का चुनाव कर सके I भगवान् श्री कृष्ण के अनुसार एक व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई ज्ञान नहीं दे सकता, इसलिए मनुष्य को समय – समय पर अपना आंकलन भी करना चाहिए I

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ईश्वर ही सबसे बड़ा सहारा है

परमपिता ही हमारे एकमात्र आधार हैं और अपने हैं, इस संसार में कोई भी अकेला नहीं है I ईश्वर में विश्वास रखते हुए जो मनुष्य कर्मपथ पर बढ़ता जाता है वो सदा शान्ति, सुख और मुक्ति पाता है, बहुत और भविष्य की चिंता करना व्यर्थ है, वर्तमान ही सत्य है I जो भी पूर्ण समर्पण से ईश्वर की शरण में आता है, परमात्मा उसका कल्याण अवश्य करते हैं I

भगवानों में कोई छोटा या बड़ा नहीं

इस संसार में ईश्वर कई रूपों में जाना जाता है, इनमे से कोई भी रूप बड़ा या छोटा नहीं है, परमात्मा का हर रूप समान है, जैसे हर नदी अंत में सागर में जाकर मिलती है, वैसे ही हर धर्म, मत और सम्प्रदाय की धाराएं परमात्मा रूपी समुद्र में समै जाती हैं I यह संसार परमपिता का ही स्वरूप है वो हर कण में विद्यमान है I

वर्तमान का आनंद लो

बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा, जो होता है अच्छा ही होता है, इसलिए वर्तमान का आनंद लो

अति करने से बचें

जीवन में संतुलन बहुत जरुरी है, किसी भी चीज की अति करना अच्छा नहीं है, जैसे सुख आने पर प्रमाद करना सुर दुःख आने पर निराशा में डूबे रहना, दोनों ही गलत हैं I अंसतुलन जीवन की गति और दिशा को बाधित करता है, जिससे अनावश्यक कष्ट और दुखों का जन्म होता है I जिसके मन, विचार और कर्म में संतुलन है, उसे ज्ञान मिल जाता है और ज्ञान से ही सदा के लिए शान्ति, संतुष्टि मिलती है I

ध्यान करने से परमात्मा को अनुभव किया जा सकता है

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि शारीरिक कर्म से ज्ञान का मार्ग उच्च है और ज्ञान मार्ग से भी ऊपर ध्यान मार्ग है I ध्यान मार्ग पर बढ़ने से ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है, जो व्यक्ति मन और इन्द्रियों को शान्त करके पूर्ण विश्वास से अपना ध्यान भगवान में लगाता है, उसे ईश्वर का ज्ञान और आस्तित्व अवश्य अनुभव होता है I

जो हर जगह, हर जीव – मनुष्य में ईश्वर को देखता है, सबके हिट में लगा रहता है, उस पर परमपिता अवश्य कृपा करते हैं I ज्ञान मार्ग हो या भक्ति मार्ग, समर्पण, प्रेम, विश्वास ही आपको ईश्वर के प्रकाश की ओर ले जाता है I भगवान की पूजा बहुत से लोग करते हैं लेकिन उनको शान्ति क्यों नहीं मिलती, क्योंकि भगवान् आपके मन में निवास है, उसे पता है की आपका भाव क्या है I

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ज्ञान और कर्म एक है

एक अज्ञानी कर्म और ज्ञान को अलग – अलग समझता है लेकिन एक ज्ञानी जनता है कि दोनों एक ही हैं I लोग ज्ञान की बातें तो करते हैं लेकिन उनका पालन नहीं करते, बिना पालन किये ज्ञान कोरा रह जाता है, ज्ञान का अनुभव नहीं होता I गीता कहती है कि ज्ञान पढ़ने की नहीं बल्कि अनुभव करने की वास्तु है और अनुभव बिना कर्म किये नहीं मिलता I

इच्छा दुःखों का मूल है

इस संसार में जितनी चीजें सांसारिक सुख की श्रेणी में आती हैं, उनकी एक शुरुआत और अंत जरूर होता है I इन सांसारिक सुखों का अंत दुःख, कष्ट और दुर्गति के रूप में होता है, इच्छाओं का अंत नहीं है I

स्वार्थी होना गलत है

जो व्यक्ति हमेशा स्वार्थ से प्रेरित होकर फल की चिंता करते हुए कर्म करते हैं और सिर्फ फल ही उन्हें कर्म करने को प्रेरित करता है, ऐसे लोग दुःखी और वेचैन रहते है क्योंकि उनका दिमाग हमेशा इसी उलझन में फंसा रहता है कि उन्हें क्या फल मिलेगा I स्वार्थी व्यक्ति सुखी नहीं रह पाता और ऐसे व्यक्ति से कोई भी सम्बन्ध नहीं बनाना चाहता I इसलिए स्वार्थ से ऊपर उठें और दूसरों का हित करें I

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Ashish Agnihotri

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