व्यक्ति के विनाश और सफलता का राज उसकी वाणी में छिपा होता है. चाणक्य के अनुसार मनुष्य की जुबान से कड़वे और मीठे बोल निकलते हैं. जुबान में इतनी ताकत है कि बिगड़े काम को बनाने की क्षमता भी रखती है
और रिश्तों को काटने की भी. चाणक्य कहते हैं कि एक धनवान की बोली में अगर कड़वापन है तो उससे गरीब व्यक्ति कोई नहीं लेकिन निर्धन होकर भी जो मीठा बोले अपनी वाणी को संयमित रखे वह पूजनीय है.
संयमित बोली पर चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को धन-दौलत से नहीं बल्कि शब्दों से कंजूस होना चाहिए. उतना ही बोले जितना काम का हो, बेवजह या अपशब्द बोलने से अच्छा है चुप रहना
मुंह से निकला शब्द वापस नहीं आ सकता. कड़वे बोल दूसरों को ठेस पहुंचाने के साथ व्यक्ति के विनाश का कारण बनते हैं. वाणी में सफलता को असफलता में बदलने की ताकत होती है
बोलने से पहले 100 बार सोचना चाहिए. शब्दों का वार ऐसा होता है जो मरते दम तक ह्दय में चुभता रहता है. जो वाणी पर काबू पा लेते हैं वह जग जीतने की क्षमता रखते हैं